US Fed Rate Cuts: जानिए, यूएस ब्याज दर कटौती के बाद भारत पर क्या होगा असर…
US Fed Rate Cuts: अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने 2020 के बाद पहली बार ब्याज दरों में 50 आधार अंकों की कटौती की है। अमेरिका में ब्याज दरें अब 4.75 से बढ़कर 5 प्रतिशत हो गई हैं। पहले यह 5.25 से 5.50 प्रतिशत के बीच थी। भारत में विदेशी निवेश में वृद्धि दर कटौती के सबसे संभावित तात्कालिक लाभों में से एक है। निवेशक उच्च अमेरिकी ब्याज दरों की अवधि के दौरान अपने मजबूत प्रतिफल के लिए अमेरिकी ट्रेजरी (US Treasury) प्रतिभूतियों को पसंद करते हैं। निवेशक अब कहीं और, विशेष रूप से भारतीय इक्विटी और ऋण बाजारों में अधिक रिटर्न की तलाश करेंगे, क्योंकि दर कटौती के परिणामस्वरूप इन उपकरणों पर प्रतिफल में कमी आई है। इस बदलाव के परिणामस्वरूप भारतीय शेयरों और बॉन्ड (Indian stocks and bonds) की मांग बढ़ सकती है, जिसके परिणामस्वरूप भारत में महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय पूंजी प्रवाह होगा। इसके परिणामस्वरूप उनकी कीमतें बढ़ सकती हैं।
रुपये की स्थिति में होगा सुधार
TOI के अनुसार, विदेशी नकदी के प्रवेश का भारतीय रुपये पर भी प्रभाव पड़ने की उम्मीद है। रुपये की मांग बढ़ेगी क्योंकि विदेशी निवेशक निवेश करने के लिए अपनी नकदी को भारतीय रुपये में बदल देंगे। इसके परिणामस्वरूप अमेरिकी डॉलर के सापेक्ष रुपये का मूल्य संभवतः बढ़ेगा। मजबूत रुपये आयात लागत को कम कर सकते हैं, लेकिन वे विदेशी उपभोक्ताओं के लिए अपने उत्पादों की कीमत बढ़ाकर भारतीय निर्यातकों (Indian Exporters) को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं।
बॉन्ड बाजार में आ सकता है उछाल
वैश्विक स्तर पर घटती ब्याज दरें अक्सर बॉन्ड बाजार में उछाल का कारण बनती हैं। इसका मतलब है कि नए जारी किए गए बॉन्ड की तुलना में मौजूदा भारतीय बॉन्ड अपने लाभप्रद प्रतिफल के कारण अधिक आकर्षक हो जाते हैं। यह संबंध व्यवसायों और सरकार (Businesses and Government) के लिए उधार लेने की लागत को कम कर सकता है। यह अधिक पूंजीगत व्यय को बढ़ावा देगा और आर्थिक विस्तार को गति देगा।
IT उद्योगों में होगी अधिक मांग
फेड की दर में कमी संभवतः कुछ उद्योगों को सीधे मदद करेगी। IT उद्योग में अधिक मांग हो सकती है। क्योंकि कम उधार दरें अमेरिकी फर्मों को अपने IT खर्च को बढ़ाने की अनुमति देती हैं। इसके अलावा, एक मौका है कि उपभोक्ता उत्पाद और बुनियादी ढाँचा जैसे अन्य उद्योग विस्तार कर सकते हैं।
RBI पर भी पड़ेगा प्रभाव
एक महत्वपूर्ण कारक फेड के दर-कटौती निर्णय पर RBI की प्रतिक्रिया होगी। भारतीय मौद्रिक नीति (Indian Monetary Policy) ऐतिहासिक रूप से अमेरिकी ब्याज दरों से प्रभावित रही है। भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने पहले कहा था कि भारत को अन्य देशों की तरह अपनी ब्याज दरों में कटौती करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है।